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Wednesday, July 28, 2010

मैं तुमसे सँवरी


तुम्हारी  आँखों  की  चमक
मेरी  बिंदिया  बन  मुस्काती  है
परछाई  जो  है  तुम्हारी
नैनों  का  कजरा  बन  जाती  है

शब्दों  से  झरते  फूलों  को
गजरा  बना  सजाती  हूँ
नेह  की  आभा  को  तुम्हारी
होठों  की  लाली  बनाती  हूँ

बाहें  तुम्हारी  सदाबहार
कंठहार  बन  मुझपर  सजते  हैं
पदों  की  मधुर  चापें तुम्हारी
पायल  बन  पैरों  में   खनकते  हैं

तुमको  छूकर  आती  बयार
मुझको  हरदम  महकाती  है
हंसी  की   झंकार  तुम्हारी
सूनी  कलाई  सजाती  है

नख  से  शिख  तक
बस  तुम  ही  तुम, हो  छाये
यूँ  अपने  नेह  से
हो  मुझको, हर  पल  सजाये.
5:26p.m., 12/7/10

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