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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Saturday, September 14, 2013

fir, kyun..फिर, क्यूँ




क्यूँ बुने सपने मैंने तेरी पलकों तले
क्यूँ मेरे नैनों में तुम चमक बन जले
क्यूँ चाहें हो खुशियों भरी तेरी जिंदगी
क्यूँ हो जाती है तुम बिन सूनी जिंदगी

क्यूँ चाहें हो सदा तेरे होंठों पर हंसी
क्यूँ खोये तेरे बिन जीवन की ख़ुशी
क्यूँ नहीं भाती है तेरे बिना ये जिंदगी
क्यूँ लगे अब विदा ले जाये ये जिंदगी
              
2.25pm, 9sept, 13


Sunday, September 8, 2013

kuchh teri, fir teri कुछ तेरी, फिर तेरी



कुछ तेरी नजर बदली सी है
कुछ हमने चुप्पी भांप ली है 9.42.am

जाने क्या बात है तेरी वफ़ा में
तेरे करीब आये तूने दूरी कर ली

जाने क्या बात है तेरी नजर में
मिलाई हमसे नजर नजर बदल ली

हम तुझे कैसे क्यूँ प्रमाण-पत्र देंगे
तेरे बदलते वादों इरादों ने साक्षी दी

एक पल को दुनिया भुलाई नेह से भर दिया
फिर दुनिया की रंगीनियों ने नियत बहका दी

वफ़ा की कसमों से किया बरी थी कभी तूने ली
जा हमने तेरे परों को उड़ जाने की स्वछंदता दी
11.58 am

हम चुप चाप चले जायेंगे तेरी दुनिया से
जैसे कभी तेरी पलकों तले स्वप्न न पले थे
12.12 pm, 8/8/13

Saturday, September 7, 2013

kaid कैद



दे न्योता शाह आने को गैर के महल में
नही तेरी मैं मुमताज तो क्यूँ है मेरी रूह कैद
माना मैंने, मेरे रूप के चर्चे नही सारे जहाँ में
ना किया मैंने भंवरों को अपनी जुल्फों में कैद

मत बनाना मेरे मरने के बाद शाह ताजमहल
जीते जी दे दी है दर्द के मकबरे में हरपल की कैद
नहीं चाह किसी रियासत की, ना चाहूँ, हो मेरा महल
मिल जाये जो मुझे तेरे पलकों की छाँव, बाँहों की कैद

3.43pm, 5 sept 2013