तुम बैठे इक शिला पर, निहारते प्रकृति
मैं तुम्हारे घुटनों पर सर टिकाये बैठी होती
हवा मेरी लटों से खेलती उन्हें बारम्बार उलझाती
यूँ खोये खोये तुम्हारी उँगलियाँ मेरी लटें सुलझाती
सुनहरे रथ पर सवार उसने तुम पर किरणें वारी
मन मुदित मेरा होता देख प्यारी वो छवि तुम्हारी
काश गुजर जाती यूँ ही तुम्हे निहारते जिंदगी सारी
उस पल पर कर दूँ अपनी सारी जिंदगी ख़ुशी से वारी
साँझ की बेला का भ्रमण थाम मेरा हाथ
कुसुमदलों, हरे-पीत पत्रों, तितलियों का साथ
बयार संग मेरी लटों तुम्हारे कपोलों की बात
तुम्हारे गीत से तरंगित गाता मेरा हृदय साथ
श्याम चूनर सजा नभ का मन मोहना
तारों का खेल देखना संग तुम्हारे हृदयमोहना
मेरे मन की पीर तुम्हारी बातों का सब हर लेना
तुम्हारे होंठों पर मुस्कान सजी रहे मेरा दुआ करना
कहने को कितना सादा सा है मेरा ये सपना
कि तुम बस तुम ही कहते मुझे सदा ही अपना
पर ये रह जायेगा बस मेरी भीगी आँखों का सपना
उन पलों को समेट लूँ एक बार तुम कहो जो अपना
1.58pm, 12 dec, 14
मैं तुम्हारे घुटनों पर सर टिकाये बैठी होती
हवा मेरी लटों से खेलती उन्हें बारम्बार उलझाती
यूँ खोये खोये तुम्हारी उँगलियाँ मेरी लटें सुलझाती
सुनहरे रथ पर सवार उसने तुम पर किरणें वारी
मन मुदित मेरा होता देख प्यारी वो छवि तुम्हारी
काश गुजर जाती यूँ ही तुम्हे निहारते जिंदगी सारी
उस पल पर कर दूँ अपनी सारी जिंदगी ख़ुशी से वारी
साँझ की बेला का भ्रमण थाम मेरा हाथ
कुसुमदलों, हरे-पीत पत्रों, तितलियों का साथ
बयार संग मेरी लटों तुम्हारे कपोलों की बात
तुम्हारे गीत से तरंगित गाता मेरा हृदय साथ
श्याम चूनर सजा नभ का मन मोहना
तारों का खेल देखना संग तुम्हारे हृदयमोहना
मेरे मन की पीर तुम्हारी बातों का सब हर लेना
तुम्हारे होंठों पर मुस्कान सजी रहे मेरा दुआ करना
कहने को कितना सादा सा है मेरा ये सपना
कि तुम बस तुम ही कहते मुझे सदा ही अपना
पर ये रह जायेगा बस मेरी भीगी आँखों का सपना
उन पलों को समेट लूँ एक बार तुम कहो जो अपना
1.58pm, 12 dec, 14
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : गया से पृथुदक तक
कल 14/दिसंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
गहरे अहसासों से परिपूर्ण सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteखूबसूरत श्रृंगार रस!
ReplyDeleteप्रेम से परिपूर्ण बहुत प्यारी रचना. बधाई प्रीति.
ReplyDelete