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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Saturday, September 20, 2014

meri peeda tum मेरी पीड़ा तुम




मेरे  होंठ  सूखे, आँखें  नम  हैं
डूबे  तेरी  याद  में  सनम  हम  हैं
6.45pm 23 mar 14

वो    गए  हवाओं  ने है बता  दिया  मुझे
मुझसे  हीअपने  को  छुपाया, है रंज  मुझे
9 pm, 23 mar, 14


एक  वो  जमाना  था  सुबह  हमसे  होती  थी
रात  चिरागों  को  हमने  मिलकर  सुलाया  था
और  आज  तुम  मुझसे  दूर  महफ़िलें  हो सजाते
मेरे  आंसुओं  में  दर्द  मिलेगा  ये  दिन-रात  हैं  बताते
10.11pm, 23 mar, 14


हँसी  को  मेरे  लब  अब  भाते  नही
आती  है  बस  भूले  से  पर  रूकती  नही
दर्द  आकर  लिपटते  है  क्यूँ  जाते  नही
क्यों  मेरे  प्रभु  को  मेरी  प्रीत  रोकती नहीं
3.22pm, 28 mar, 14


मुझे  पता  है  जब  भी  मैं  अपने  साथ  रहूंगी
तुम  हौले  से  मुस्कुराते  मेरे  समीप  चले  आओगे
मेरी  आँखें  बारम्बार  तुम्हे  याद  कर  भर-भर  जाएँगी
मेरी  पीड़ा  से  क्या  तुम  हृदय  को  अछूता  रख  पाओगे