ब्लॉग में आपका स्वागत है

हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Friday, October 28, 2011

मैं जोगी

आपने इस रचना को पढ़ा था 
http://prritiy.blogspot.com/2010/05/blog-post_6224.html


एक मित्र के अनुरोध पर इसके  पुरुष  रूप  का  प्रयास------- >
--------


क्या कहूँ मैं तुमको

 
मैं जोगी
ओह! कैसा जोगी
नेह तेरे ने बांधा मुझको


Thursday, October 20, 2011

तुम इतनी दूर


मुझे  तुम  याद  आते  हो  प्रिय 
परेशान  करती  है जिंदगी  जब 
ढूंढती  हूँ तुम्हारे  बाँहों  का  सहारा 
चाहती,  काँधों पर  सर  रख  रो  लूँ  

पर  तुम  तो  दूर  हो  हृदयचन्द्र 
कांपते  होंठ  सी  लेती  हूँ  अकेले  में
अंधियारे  में  बहते  अश्रु  पोंछ  लेती  हूँ
तुमसे  हँस  कर मीठे  बोल बोलती  हूँ  मैं

हाँ  कितने  दूर  हो मेरे जीवन  गगन 
अपने  हालातों से   दिन  रात  जूझते
तकलीफों  कष्टो  को  पल-पल  सहते
कैसे  फिर  कह  दूँ  तुमसे अपना  दर्द

क्यों  तुम  हो  इतनी  दूर  प्रिय
2.43am 20/10/11