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Thursday, October 20, 2011

तुम इतनी दूर


मुझे  तुम  याद  आते  हो  प्रिय 
परेशान  करती  है जिंदगी  जब 
ढूंढती  हूँ तुम्हारे  बाँहों  का  सहारा 
चाहती,  काँधों पर  सर  रख  रो  लूँ  

पर  तुम  तो  दूर  हो  हृदयचन्द्र 
कांपते  होंठ  सी  लेती  हूँ  अकेले  में
अंधियारे  में  बहते  अश्रु  पोंछ  लेती  हूँ
तुमसे  हँस  कर मीठे  बोल बोलती  हूँ  मैं

हाँ  कितने  दूर  हो मेरे जीवन  गगन 
अपने  हालातों से   दिन  रात  जूझते
तकलीफों  कष्टो  को  पल-पल  सहते
कैसे  फिर  कह  दूँ  तुमसे अपना  दर्द

क्यों  तुम  हो  इतनी  दूर  प्रिय
2.43am 20/10/11

6 comments:

  1. खूबसूरत प्रस्तुति |

    त्योहारों की नई श्रृंखला |
    मस्ती हो खुब दीप जलें |
    धनतेरस-आरोग्य- द्वितीया
    दीप जलाने चले चलें ||

    बहुत बहुत बधाई ||

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  2. IT IS MY VIEW THAT YOU ARE REAL SEEKER of THE TRUTH

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  3. अनुपम प्रेम का अहसास होता है आपकी
    सुन्दर अभिव्यक्ति में.

    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    प्रीति जी,आपके व आपके समस्त परिवार के स्वास्थ्य की सुख समृद्धि की मंगलकामना करता हूँ.मैं यह दुआ करता हूँ कि अपने सुन्दर
    सद् लेखन से आप ब्लॉग जगत को हमेशा हमेशा
    आलोकित करती रहें.

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है,

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  4. बहुत बहुत आभार......
    आपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!

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  5. मुझे तुम याद आते हो प्रिय
    परेशान करती है जिंदगी जब
    ढूंढती हूँ तुम्हारे बाँहों का सहारा
    चाहती, काँधों पर सर रख रो लूँ ..SUNDAR

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Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.