मुझे तुम याद आते हो प्रिय
परेशान करती है जिंदगी जब
ढूंढती हूँ तुम्हारे बाँहों का सहारा
चाहती, काँधों पर सर रख रो लूँ
पर तुम तो दूर हो हृदयचन्द्र
कांपते होंठ सी लेती हूँ अकेले में
अंधियारे में बहते अश्रु पोंछ लेती हूँ
तुमसे हँस कर मीठे बोल बोलती हूँ मैं
हाँ कितने दूर हो मेरे जीवन गगन
अपने हालातों से दिन रात जूझते
तकलीफों कष्टो को पल-पल सहते
कैसे फिर कह दूँ तुमसे अपना दर्द
क्यों तुम हो इतनी दूर प्रिय
2.43am 20/10/11
खूबसूरत प्रस्तुति |
ReplyDeleteत्योहारों की नई श्रृंखला |
मस्ती हो खुब दीप जलें |
धनतेरस-आरोग्य- द्वितीया
दीप जलाने चले चलें ||
बहुत बहुत बधाई ||
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
IT IS MY VIEW THAT YOU ARE REAL SEEKER of THE TRUTH
ReplyDeleteअनुपम प्रेम का अहसास होता है आपकी
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति में.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
प्रीति जी,आपके व आपके समस्त परिवार के स्वास्थ्य की सुख समृद्धि की मंगलकामना करता हूँ.मैं यह दुआ करता हूँ कि अपने सुन्दर
सद् लेखन से आप ब्लॉग जगत को हमेशा हमेशा
आलोकित करती रहें.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है,
बहुत बहुत आभार......
ReplyDeleteआपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!
मुझे तुम याद आते हो प्रिय
ReplyDeleteपरेशान करती है जिंदगी जब
ढूंढती हूँ तुम्हारे बाँहों का सहारा
चाहती, काँधों पर सर रख रो लूँ ..SUNDAR