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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Wednesday, November 26, 2014

bas maanvi banne do बस मानवी बनने दो

कहते  हैं   सम्मान  करते  हैं
बहुत  ऊँचा  एक  स्थान  दिया  है

पुरुष  देता  है  यूँ  देवी  नाम
या  समझते  खेलने  की  वस्तु  तमाम

कहे  वो  जिसे  कहते  हो  देवी
मानवी  हूँ  मैं  लिए  भाव  सभी

नहीं  चाह  सारी  दुनिया  जीतने  की
हृदय  आकांक्षी  स्नेह  मिले  हों  जिनकी

देवी  भी  भावों  से  होती  है  भरी
मुस्काये  मन  की  बगिया  हो  जब  खिली

मुझे  बस  मानव  बनने  का  ही  दो  सम्मान
न  देवी  कहो  न  गिराओ  लगा  तुच्छ  इल्जाम

11.18pm, 19 nov, 14