कहते हैं सम्मान करते हैं
बहुत ऊँचा एक स्थान दिया है
पुरुष देता है यूँ देवी नाम
या समझते खेलने की वस्तु तमाम
कहे वो जिसे कहते हो देवी
मानवी हूँ मैं लिए भाव सभी
नहीं चाह सारी दुनिया जीतने की
हृदय आकांक्षी स्नेह मिले हों जिनकी
देवी भी भावों से होती है भरी
मुस्काये मन की बगिया हो जब खिली
मुझे बस मानव बनने का ही दो सम्मान
न देवी कहो न गिराओ लगा तुच्छ इल्जाम
11.18pm, 19 nov, 14
बहुत ऊँचा एक स्थान दिया है
पुरुष देता है यूँ देवी नाम
या समझते खेलने की वस्तु तमाम
कहे वो जिसे कहते हो देवी
मानवी हूँ मैं लिए भाव सभी
नहीं चाह सारी दुनिया जीतने की
हृदय आकांक्षी स्नेह मिले हों जिनकी
देवी भी भावों से होती है भरी
मुस्काये मन की बगिया हो जब खिली
मुझे बस मानव बनने का ही दो सम्मान
न देवी कहो न गिराओ लगा तुच्छ इल्जाम
11.18pm, 19 nov, 14
सच है देवी बन के मंदिर में कौन रहन चाहता है ... इंसान ही मान के देख ले ... व्यवहार में बराबरी का सामान देना ही बहुत है ...
ReplyDeleteमुझे बस मानव बनने का ही दो सम्मान
ReplyDeleteन देवी कहो न गिराओ लगा तुच्छ इल्जाम
...बहुत सटीक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
नहीं चाह सारी दुनिया जीतने की
ReplyDeleteहृदय आकांक्षी स्नेह मिले हों जिनकी
उत्तम