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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Wednesday, January 30, 2013

majbur deedar ko मजबूर दीदार को



हम  भी  तो  देखें  तेरे  वफ़ा-ए -मोहब्बत  को
रहती  है  रोशन  लौ  कब  तक  बिन  दीदार  के

रखते  हो  जलाये  दिल  में  इस  शमा  को
या  जला  लेते  हो  शमा  किसी  और  हसीं  के  दर  पे

सोचते  हैं  हो  जायें   पर्दानशीं  तुझे  आजमाने  को
खुद  हो  जाते  हैं  मजबूर  दीदार  को  दिल  की  तड़प  से
12.24am, 1/29/2013

Wednesday, January 16, 2013

milna mujhse मिलना मुझसे




खुद  को  देखे  अरसा  बीता  अपनी  आँखें  भेजो  ना
खुद  को  सुने  बरसों  बीते  कोई  बोल  अब  बोलो  ना
खुद  से  मिले  अरसा  बीता  जरा  मेरे  करीब  आओ  ना
खुद  को  संवारे  अरसा  बीता  उलझी  लट  सुलझाओ  ना
खुद  से  गाये  वक़्त  बीता  गीत  कानों  में  गुनगुनाओ  ना
खुद  से  बोले  बरसों  बीते  मुझसे  मुझको  अब  मिलाओ  ना
खुद  को  जाने  अरसा  बीता, मेरे, अब  मुझसे  मिल  जाओ  ना

10.59pm, 16 dec12

Tuesday, January 8, 2013

khamosh bol - ख़ामोश बोल



सभी  जी  लेते  है  किसी  को  बिछडन  ले  जाती  नहीं
हम  भी  जिन्दा  हैं  सिसकते  इस  जमीं  परमरे  नहीं
दुआ  करते  हैं फिर भी  ये  मौत  हमें  क्यूँ  ले  जाती  नहीं
1.33pm,

शब्द   बहुत  हैं  मेरे  हृदय, होंठ  में
सोच  ये  है  कि  बेमोल    हो  जायें  जहाँ  में
7.05pm

तेरी  खामोशियाँ  बहुत  बोलती  हैं
उन्हें  जिसे  कहती  हैं  उन्हें  भी  जिनसे  नहीं  कहती  कुछ

7.24pm

मेरी  खामोशियों  की चीत्कार  गूंजी  थी
तुम    सुन  सके, मेरी  तन्हाई  ने  सुनी  थी
7.33pm

तुम  जले  हो  ये  कहते  हो  अक्सर  ही  तुम
तो  ये  धुंआ  कही  और  क्यों  उठ  रहा  है
7.73 pm

हमने  जो  पूछे  तुमसे  सवाल  सरे  महफ़िल
  कह  पाओगे    चुप  रह  पायेगा  तुम्हारा  दिल
7.47pm, 23 /12/12