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Tuesday, January 8, 2013

khamosh bol - ख़ामोश बोल



सभी  जी  लेते  है  किसी  को  बिछडन  ले  जाती  नहीं
हम  भी  जिन्दा  हैं  सिसकते  इस  जमीं  परमरे  नहीं
दुआ  करते  हैं फिर भी  ये  मौत  हमें  क्यूँ  ले  जाती  नहीं
1.33pm,

शब्द   बहुत  हैं  मेरे  हृदय, होंठ  में
सोच  ये  है  कि  बेमोल    हो  जायें  जहाँ  में
7.05pm

तेरी  खामोशियाँ  बहुत  बोलती  हैं
उन्हें  जिसे  कहती  हैं  उन्हें  भी  जिनसे  नहीं  कहती  कुछ

7.24pm

मेरी  खामोशियों  की चीत्कार  गूंजी  थी
तुम    सुन  सके, मेरी  तन्हाई  ने  सुनी  थी
7.33pm

तुम  जले  हो  ये  कहते  हो  अक्सर  ही  तुम
तो  ये  धुंआ  कही  और  क्यों  उठ  रहा  है
7.73 pm

हमने  जो  पूछे  तुमसे  सवाल  सरे  महफ़िल
  कह  पाओगे    चुप  रह  पायेगा  तुम्हारा  दिल
7.47pm, 23 /12/12




4 comments:

  1. मेरी खामोशियों की चीत्कार गूंजी थी
    तुम न सुन सके, मेरी तन्हाई ने सुनी थी ...

    बहुत खूब ... लाजवाब पंक्तियाँ ... तन्हाई सब कुछ सुन लेती है ...

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आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.