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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Monday, June 13, 2011

एक कहानी अधूरी


मैं सोच  में  रही  वो  बात  करेंगे
वो  आस  में  रहे  हम  याद  करेंगे
यूँ  सोचते  अर्सा  बीता, गए  तरस
आस  को  आस  लगाये  बीते  बरस

कब  ये  दूरीराहों  मेंपसर  गई
तस्वीरों  में  जम, धूल  की  परत, गई
बस  दो  हाथ  की  ही  तो थी  दूरी 
और  ना  ही  कोई  भी थी  मजबूरी 


समय  बीतता  गया  बढ़ती  गई  दूरियाँ
बढ़ती  गई  जो    थी  कहीं  भी, मजबूरियाँ
  सोच  टूटी    आस  हुई  पूरी
रह  गई  एक  कहानी  फिर  अधूरी
12:51am, 10/10/10