मैं सोच में रही वो बात करेंगे
वो आस में रहे हम याद करेंगे
यूँ सोचते अर्सा बीता, गए तरस
आस को आस लगाये बीते बरस
कब ये दूरी, राहों में, पसर गई
तस्वीरों में जम, धूल की परत, गई
बस दो हाथ की ही तो थी दूरी
और ना ही कोई भी थी मजबूरी
समय बीतता गया बढ़ती गई दूरियाँ
बढ़ती गई जो न थी कहीं भी, मजबूरियाँ
न सोच टूटी न आस हुई पूरी
रह गई एक कहानी फिर अधूरी
12:51am, 10/10/10
ऐसा भी होता है - मनोभावों की मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeletedhanyawad Rakeshji.
ReplyDeleteन सोच टूटी न आस हुई पूरी
ReplyDeleteरह गई एक कहानी फिर अधूरी
bahut hi talkh or gahri baat ko shabdon mein dhala hai ..exceelent creation
मैं सोच में रही वो बात करेंगे
ReplyDeleteवो आस में रहे हम याद करेंगे
यूँ सोचते अर्सा बीता, गए तरस
आस को आस लगाये बीते बरस
vah! bahut sundar bhavpoorn prastuti.
har shabd jaise bol raha hai.
dil ko chhu rahi hai aapki yah 'ek
kahaani adhuri'
aapka mere blog par swagat hai.
रचना में विरह का योग दिखता है.मन कि विवशता और बैचनी को उजागर करती रचना.
ReplyDeleteमुझे ये कविता बहुत पसदं आई
ReplyDeleteविजय