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Friday, July 22, 2011

मेरे पापा को मुझ पर गर्व है


मितभाषी  हैं  पापा  मेरे
मुस्कान  उनके  चेहरे  पर  खेले
बचपन  में  लड़ती  थी  उनसे
पापा  बात  करो  ना  मुझसे
बस  मुस्कुरा  भर  वो  देते
सर  हाथ  वो  रख  देते
जब  भी  सर  में  दर्द  होता
उनकी  गोद  मेरा  सर  होता 
कभी    जाना  अभाव  क्या  है 
त्याग  कितना  उन्होंने  किया  है 
खरीददारी  थे  वो    करते
बिन  कहे  मगर  भांपा  करते
क्रीम  मेरे  लिए  लाया  करते
सिनेमा  जाने  वो  दिया  करते 
समय  ने  फिर  ली  अंगडाई 
परीक्षा  की  कठिन  घडी  आई 
थी  पर    कभी  अकेले 
पापा  थे  सब  परेशानी  झेले 
बच्चों  की  तकलीफों  ने  होगा  तोडा 
पर  मुस्कान  ने  हमारा  साथ    छोड़ा 
समय  शरीर  पर  घाव  तो  दे  पाया 
पर  मन  को  मेरे  छू    पाया 
माँ-पापा  का  सबल  सहारा 
भाइयों  का  प्रोत्साहन  सारा 
मुस्काते  थे  होंठ  जो  मेरे 
थी  मुस्कान  पापा  की  मेरे
बढ़ती  रही  जीवन  की  राह
बाधाएँ रोक  सकी   प्रवाह
आज  मुझसे  हैं  सब  दम  भरते
पापा  मेरे  चुप  से  हँसते
करते  हैं  प्रशंसा  मेरी  हरपल
पर  मैं   पापा  की  छाया  केवल
भेद-विभेद    कभी  बताया
प्रेम भाव   ही  सदा  सिखाया 
जाना  हिन्दू-मुस्लिम  मैंने  ऐसे 
राम  श्याम  दो  भाई  जैसे 
अपना  मान  रखना   सिखाया 
दूजे  का  सम्मान  समझाया 
कैसे  द्वेष  फिर  मुझमें  भर  जाए 
पापा  ने  जहाँ  स्नेह  पुष्प -खिलाए 
चाहा  पापा  ने  भी  था  दिल  में 
बच्चे  छूएं  बुलंदियाँ  जग  में
सपनों  में  वो  रंग हम  भर  पाए
पापा  हमारे  फिर  भी  हैं  मुस्काए 
जैसा  जीवन  जिया  है  मैंने 
जो  भी  खोया  पाया  जीवन  में
पापा   का  दिया  आत्मबल  है
जिससे  जीवन  जिया  हरपल  है 
बिटिया  से  घर  घर  है 
अपनी  बिटिया  पर  गर्व  है 
यही  मुस्काते  वो  कहते  हैं 
पर  पापा  मेरे  मेरा  गर्व  हैं 
11:56 a.m., 10/8/10

5 comments:

  1. पापा का दिया आत्मबल है
    जिससे जीवन जिया हरपल है

    अनुपम भावों की सुन्दर प्रस्तुति की है आपने.
    आपके पितृ प्रेम को मेरा सादर नमन.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  2. सुन्दर उदगार हैं पिता के लिए ...

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  3. हृदयस्पर्शी...... सच में ऐसे ही होते हैं पापा..... आँखें भर आयीं पढ़कर ....

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