लो अपना बंधन हटा मुक्त किया मैंने
कह तो दिया, तुम्हे, मेरे बाँवरे मन ने
कभी न मिलेगी आजादी इस दिल को
पगली तो चाहे है, हरपल बस तुम्ही को
भर लिया है इन्तजार हर पल का
अब, अब आएगा संदेसा मेरे नाम का
द्वार को, बेचैन मेरी अँखियाँ, तकती हैं
नाम तेरा ले अब भी सांसें मेरी चलती हैं
आस मेरी टूटकर भी नहीं है टूटती
विश्वास की चांदनी जरा भी न घटती
कहता है मन, प्रियतम मेरे, तुम आओगे
मेरा नेह दिल से तुम भी न भुला पाओगे
रोते नैन भी तब मुस्कुरा देते हैं
ओंठ मेरे जब भी नाम तेरा लेते हैं
तेरे नाम की बिंदिया सजा लेती हूँ
दर्द को आँखों का कजरा बना लेती हूँ
आजाद किया तुमको, ओ प्रिय मेरे
कि लौट आओ, बनके, अब बस मेरे
लेंगे हम मिलकर, जीवन के, हर फेरे
मैं सदा रहूँ तुम्हारी, तुम रहो सदा मेरे
4.13pm, 22/2/2012
Nice.. keep writing.
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या।
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
badhiya kavita...
ReplyDeleteबेहतरीन भाव
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ती:-)
एक दूसरे के बंधन मेन बंधे फिर मुक्त कहाँ ? अच्छा भाव संयोजन
ReplyDeleteमुक्ति में बंधन की तलाश. सुंदर कविता.
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
इकतरफा प्यार की पीड़ा ....भावपूर्ण प्रस्तुति !
ReplyDeleteअच्छी रचना...
ReplyDeleteसुन्दर भाव उकेरे हैं...
आस मेरी टूटकर भी नहीं है टूटती
ReplyDeleteविश्वास की चांदनी जरा भी न घटती
कहता है मन, प्रियतम मेरे, तुम आओगे
मेरा नेह दिल से तुम भी न भुला पाओगे
बहुत खूबसूरत भाव...
अनुपम स्नेहमय समर्पण.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति लाजबाब है प्रीति जी,
आपके सुन्दर नाम को सार्थक करती हुई.
बहुत बहुत आभार,जी.
रोते नैन भी तब मुस्कुरा देते हैं
ReplyDeleteओंठ मेरे जब भी नाम तेरा लेते हैं
तेरे नाम की बिंदिया सजा लेती हूँ
दर्द को आँखों का कजरा बना लेती हूँ
WAAH WAAH ..
bahut achchhi kavita ,aapki kavitaao ka javaab nahi ,hriday sprshi hoti hai aapki kavitaaye
ReplyDelete