छोडूँ मैं या छोडो तुम, दोनों ही हाथ छूटते हैं
जाऊँ मैं या जाओ तुम, दोनों के ख्वाब टूटते हैं
आगे बढूँ मैं, बढ़ो आगे तुम, दोनों ही कदम जुड़ते हैं
हाथ बढाऊँ मैं और बढाओ तुम, तब ही हाथ जुड़ते हैं
कुछ बोलूं मैं, कुछ बोलो तुम, चुप्पी तभी टूटती है
कुछ सुलझुं मैं, कुछ सुलझो तुम, उलझन तभी छूटती है
जो रूठूं मैं और रूठ जाओ तुम, किस्मत तभी रूठती है
जुदा रहूँ मैं और जुदा रहो जो तुम, दुनिया तभी लूटती है
आगे बढूँ मैं, बढ़ो आगे तुम, दोनों ही कदम जुड़ते हैं
हाथ बढाऊँ मैं और बढाओ तुम, तब ही हाथ जुड़ते हैं
कुछ बोलूं मैं, कुछ बोलो तुम, चुप्पी तभी टूटती है
कुछ सुलझुं मैं, कुछ सुलझो तुम, उलझन तभी छूटती है
जो रूठूं मैं और रूठ जाओ तुम, किस्मत तभी रूठती है
जुदा रहूँ मैं और जुदा रहो जो तुम, दुनिया तभी लूटती है
मुस्कुराऊँ मैं,
मुस्कुराओ तुम,
मोहब्बत फिर खिलती है
तुम्हारी बनूँ मैं और मेरे बनो तुम, जिंदगी फिर मिलती है
तुम्हारी बनूँ मैं और मेरे बनो तुम, जिंदगी फिर मिलती है
3.43pm 26/2/2012
वाह! प्रीति जी वाह!
ReplyDeleteसुन्दर अनुपम प्रस्तुति है आपकी.
सरल मृदुल शब्द और भावों का संयोजन
दिल को छूता है.
शानदार प्रस्तुति के लिए आभार जी.
मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
'मेरी बात...' पर कुछ अपनी कहिएगा.
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
पारस्परिक यह लेना देना,
ReplyDeleteपरम्परा है प्यार की ।
प्रीत्यर्थी ये छुआ-छुआना,
मर्यादित अभिसार की ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
bahut hi sundar kavita hai ....
ReplyDeleteYOU HAVE EXPRESSED THE BEAUTY OF LOVE...AND IT IS THE SUBJECT OF UNDERSTANDING. THANX
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गज़ल . शब्द का भाव बेहतर है .
ReplyDeleteबधाई
विजय
www.poemsofvijay.blogspot.in पर आयियेंगा .
आपका धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने के लिये
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव स्नेह जी..
ReplyDeleteसच है ताली दोनों हाथों से बजती है........
बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteमुस्कुराऊँ मैं, मुस्कुराओ तुम, मोहब्बत फिर खिलती है
ReplyDeleteतुम्हारी बनूँ मैं और मेरे बनो तुम, जिंदगी फिर मिलती है
HAA SAHI KAHAA AAPNE BAHUT SUNDAR ..