तुमने पूछा था एक दिन
कहो मुझ पर कुछ लिखा
क्या लिखूं तुमपर मैं
देखो आज बातों में हो
विचरती हूँ यहाँ वहाँ
मन उपवन में, सेहरा में
नितांत अकेली भ्रमण करती
पर संग मेरे तुम भी हो
रात्रि में नभ के तारों से
तुम्हारे शब्दचित्र दमकते
दिवस में कुमुददलों की ले
सुगंध, मानसपटल पर छाये हो
नहीं साथी मेरे हो, हो कहते
क्यों साथ मुझे, तुम्हे भाये
दूरी कितनी, दिखे ना, न समझ आये
पर, मैं तुम्हारी, तुम मेरी सोच में हो
11.15pm, 19 sept, 14
samarpit bhaw sundar kavita
ReplyDeleteरचना पढ़ कर बहुत अच्छा लगी |
ReplyDeleteBhawnaao se ot-prot sunder rachna...badhaayi va shubhkaamnaayein !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteachchhi rachna
ReplyDeleteसुदंर रचना।
ReplyDeleteप्रेम में सब कुछ एक हो जाता है ... जीवंन जाता है ..
ReplyDeleteHey, wish I could read the language because I know you have good poetry. Miss you on WritersCafe!
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