जिंदगी आ
फिर तुझे सँवार लूँ
उलझी इन राहों को सुलझा दूँ
लड़खड़ाते पैरों को मैं सँभाल लूँ
बोझिल साँसों में अब स्फूर्ति भर दूँ
विपरीत परिस्थिति में तप कुंदन बनी
कठिन डगर में गिर कर फिर सम्भली
अश्रु अपने स्वयं पोंछने की कोशिश करी
करके प्रयत्न होंठों पर सबके मुस्कान भरी
चल चलें अब कर दृढ़ इच्छा-शक्ति
करें मिलकर सबके साथ हम उन्नति
हो कैसा भी मार्ग, कैसी भी परिस्थिति
नियंत्रित कर लेंगे हम बिगड़ी हर स्थिति
उलझी इन राहों को सुलझा दूँ
लड़खड़ाते पैरों को मैं सँभाल लूँ
बोझिल साँसों में अब स्फूर्ति भर दूँ
विपरीत परिस्थिति में तप कुंदन बनी
कठिन डगर में गिर कर फिर सम्भली
अश्रु अपने स्वयं पोंछने की कोशिश करी
करके प्रयत्न होंठों पर सबके मुस्कान भरी
चल चलें अब कर दृढ़ इच्छा-शक्ति
करें मिलकर सबके साथ हम उन्नति
हो कैसा भी मार्ग, कैसी भी परिस्थिति
नियंत्रित कर लेंगे हम बिगड़ी हर स्थिति
2.59pm, 1st Oct, 14
कल 03/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
क्या बात है.....बहुत ही खास एहसासों को समेटे हैं यह पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteचल चलें अब कर दृढ़ इच्छा-शक्ति
ReplyDeleteकरें मिलकर सबके साथ हम उन्नति
हो कैसा भी मार्ग, कैसी भी परिस्थिति
नियंत्रित कर लेंगे हम बिगड़ी हर स्थिति
..बहुत सही ..इच्छा-शक्ति से कोई काम असंभव नहीं ..
विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
Bahut sunder prastuti.... !!
ReplyDeletebahut sundr rchna ......
ReplyDeletemy recent poem मुफलिसी