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Friday, October 28, 2011

मैं जोगी

आपने इस रचना को पढ़ा था 
http://prritiy.blogspot.com/2010/05/blog-post_6224.html


एक मित्र के अनुरोध पर इसके  पुरुष  रूप  का  प्रयास------- >
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क्या कहूँ मैं तुमको

 
मैं जोगी
ओह! कैसा जोगी
नेह तेरे ने बांधा मुझको


या स्वयं मैं बंध गया
संग तुमको भी बाँध गया
बना चंद्रिके स्वयं मैं तुमको

 
स्वयं तुमसे ही विलग हुआ
विस्मित, क्यों तुमसे नेह हुआ
करके भी, कर पाया दूर तुमको

 
बदली में समाई तुम चंद्रिके
कान्ति लिए मुख पर, नेह के
नहीं ज्ञात है अब भी मुझको

 
क्यूकर तुमसे जीवन जुड़ गया
भ्रमित था या अब भ्रम में पड़ गया
कैसे दूँ नेह प्रत्युतर तुमको

 
हूँ भ्रमित मैं तुम्हारा जोगी
कैसे कहूँ मैं चंद्रिके तुमको


6/10/11



10 comments:

  1. IT IS TRUE .. WORLD IS TRUE...AND YOU INKED THIS TRUTH
    SANJAY VARMA

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  2. हूँ भ्रमित मैं तुम्हारा जोगी
    कैसे कहूँ मैं चंद्रिके तुमको

    आपके पोस्ट पर प्रथम बार आया हूँ । पोस्ट अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आकर मेरा भी मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।

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  3. क्यूकर तुमसे जीवन जुड़ गया
    भ्रमित था या अब भ्रम में पड़ गया
    कैसे दूँ नेह प्रत्युतर तुमको

    Nice lines

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  4. क्यूकर तुमसे जीवन जुड़ गया
    भ्रमित था या अब भ्रम में पड़ गया
    कैसे दूँ नेह प्रत्युतर तुमको

    प्रीति जी,अदभुत भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.
    चित्र भी बहुत दिलकश है.
    आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है जी.

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    From everything is canvas

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  6. बहुत बढ़िया ...गहन अभिव्यक्ति

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  7. खूबसूरत अदाज़. नेह से मजबूत कोई धागा नहीं होता.

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  8. बहुत सुन्दर रचना के साथ सटीक चित्रण...

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