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Saturday, September 7, 2013

kaid कैद



दे न्योता शाह आने को गैर के महल में
नही तेरी मैं मुमताज तो क्यूँ है मेरी रूह कैद
माना मैंने, मेरे रूप के चर्चे नही सारे जहाँ में
ना किया मैंने भंवरों को अपनी जुल्फों में कैद

मत बनाना मेरे मरने के बाद शाह ताजमहल
जीते जी दे दी है दर्द के मकबरे में हरपल की कैद
नहीं चाह किसी रियासत की, ना चाहूँ, हो मेरा महल
मिल जाये जो मुझे तेरे पलकों की छाँव, बाँहों की कैद

3.43pm, 5 sept 2013

9 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अब रेलवे ऑनलाइन पूछताछ हुई और आसान - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार-8/09/2013 को
    समाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





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  3. नमस्कार आपकी यह रचना कल रविवार (08-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती।

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  5. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  6. प्रेम में मिले आंसू भी ताज महल से कम नहीं ...
    बहुत खूब ...

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  7. एक ताजमहल ने कितने लोगों की कल्पनाओं पर शासन किया है. हैरानी होती है. लाइफ़ की सहजता भा आकर्षित करने वाली होती है. आपने यह बात फिर से याद दिलाई है. बहुत-बहुत शुक्रिया.

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Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.