मिले एक बंधू राह में
मैंने कहा ‘राम -राम ’
क्रोधित हो गए, बोले -
कट्टर हिंदूवादी हो – संकीर्ण
मैं हतप्रद, ऐसा क्या कह गई
सोचा विकल है आज मन उनका
इसीलिए बंधू गुस्साए हैं
कुछ दिवस बाद हुआ पुनः मिलना
थी लौट रही संग सलमा के
मदरसे से जलसे का आनंद ले
उसी रौ में कह गई ‘आदाब अर्ज है’
उफ़ चिंगारी डाल दी घी में अनजाने
भड़ककर बोले – तुम,
तुम बनो मुसलमान, शायद
भाते हो सलमा के भाई, सो
घूम मदरसे सलमा संग आई
दूजे धर्म से दोस्ती करते नहीं
यहाँ तो भाई भी बहिन के होते नहीं
मुझको काटो तो खून नहीं
सलमा के पलकों में भी नमी
कहना था बेकार कुछ उस वक़्त
न जाने क्या-क्या करना पड़ता ‘जब्त’
खैर सलमा को गले लगाया
भूल जाओ खुद को समझाया
टकरा गए एक ‘पार्टी’ में जनाब
माहौल देख कहा ‘गुड इवनिंग जनाब’
खौलते ढूध का चूल्हा तेज कर बैठी
उबलकर बोले – संस्कृति हो तज बैठी
अंग्रेज चले गए, तुम्हे छोड़ गए
और अपना ‘सफारी सूट’ झलकाते चले गए
और मैं जड़ खड़ी रह गई
कहूँ जो ‘राम -राम’ तो
बन जाती हूँ बी.जे.पी. की नायिका
लगाया जो सलमा को गले
तो बना दिया मुझको ‘काफ़िर’
और जो चली वक़्त के साथ
तो बन गई ‘फिरंगी’
जबकि मैं तो इनमें से कोई नहीं
हूँ एक सीधी सी मानवी
जिसने भेद न कभी सीखा
‘आदि’ संग ‘राधे -राधे’
तो ‘सेराजजी ’ को ‘आदाब’
‘डेविड’ को ‘गुड इवनिंग’
कहती हूँ जब मिलते हैं
राधा की भक्ति में डूब जाती हूँ
‘अल्लाह खेर करे ’ भी कहती हूँ
‘मदर मेरी ब्लेस अस’
ये भी जब -तब कहती हूँ
फिर क्यों मैं सिर्फ ‘मैं ‘ नहीं रहती
क्यों मैं ‘वो’ बन जाती हूँ ?
4:10p.m., 22/7/10
फिर क्यों मैं सिर्फ ‘मैं ‘ नहीं रहती
ReplyDeleteक्यों मैं ‘वो’ बन जाती हूँ ?
ताज्जुब है किसी ने कविता को पढ़ा नहीं है ,या पढने वाले भावशून्य है
इतनी खूबसूरत रचना और किसी ने एक शब्द भी नहीं लिखा ..
सारगर्भित ,चिंतन को मजबूर करती हुई यक़ीनन तारीफ़ की हक़दार है
दाद हाज़िर है क़ुबूल करें .
Bohot khoob priti ji....kya bhav hai
ReplyDeleteBohot khoob priti ji....kya bhav hai
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