ब्लॉग में आपका स्वागत है

हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Wednesday, July 28, 2010

क्या स्वयं को कवि बना पाया


मैंने  शब्दों  का  जाल  बुना,  पर  
बुलंद  वो  आवाज    लगा  पाया
भारी, अलंकारिक  शब्द  चुने
पर  उनमें  ओज    भर  पाया

शब्दों  में  संघर्ष  रहा,  पर
जीवन  संघर्ष    भर  पाया
बही  एक  दिशा  में  ये  सरिता
पर  मानव  दिशा    दे  पाया

भोगा  इसमें  जीवन  मैंने,  पर
आत्मचिंतन    ला  पाया
पीड़ा  तो  भर  दी  इसमें  कूट-कूट  
पर  उस  जड़  में  जल    चढ़ा  पाया

रहा  इसी  समाज  में,  पर
इसे  ही  यथार्थ    बना  पाया
लिखे  सुंदर  काव्यग्रंथ  मैंने
पर  क्या  स्वयं  को  कवि  बना  पाया.
12:23 p.m., 28/6/10

No comments:

Post a Comment

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.