प्रीत के जब आए निकट
नेह से क्यों तुम डर गए
ऊष्मा को जब लिया लगाये गले
तो शीतलता से क्यों जल गए
प्रीत को प्रभातकाल जगाया
घृत, कर से समर्पित किया
सुप्त प्रेम ज्वाला भड़कायी
फिर स्वयं को कर दूर दिया
खुलते गए स्वयं सामने मेरे
हर रूप का परिचय कराया
जग से छुपाने को सौं* कही
फिर होठों को ही मौन दिलाया
सपनों में आने का किया वादा
और आँखों से नींद उड़ा गए
बाँधने को, किया स्वयं प्रेरित
बंधन में, पर, मुझे जकड़ गए
कहा वक़्त का इन्तजार क्यों करना
पर स्वयं इन्तजार करने को कह गए
कहा कि मुझे आगे बढ़ आना चाहिए
फिर साथ-साथ चली तो रुष्ट हो गए
करीब आने का न्योता दिया
स्वयं राहों से राहे मोड़ चले गए
जीने की राह चलने का पता दिया
जीवन गृह में एकाकी छोड़ चले गए.
1:36p.m., 20/5/10 सौं*-सौगंध
Nice
ReplyDeleteअब बोलो मैम हाहाहा
ReplyDeleteअब बोलो मैम हाहाहा
ReplyDeleteThank you Sachin
DeleteNice
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