मैंने तो नित श्रद्धा जल किया अर्पण,
तुम शंकर ना बन सके
मीरा सम पिया गरल हँसकर,
तुम कान्हा ना बन सके
मैं तो मुग्ध तुम्हे तकती रही,
तुम चन्द्र दर्पण ना बन सके
मैंने कस्तूरी बन तुमको महकाया,
तुम कस्तूरी-मृग ना बन सके
मैं इन्द्रधनुष सी फैली, झलकी,
तुम नीर-नील-गगन ना बन सके
मैं तो बन बैठी मधु प्रिय,
तुम मधु-पात्र ना बन सके
मैंने तो की थी प्रीत ही तुमसे,
तुम प्रीतम ना बन सके.
3:24PM, 16/4/10
मैंने कस्तूरी बन तुमको महकाया,
ReplyDeleteतुम कस्तूरी-मृग ना बन सके
मैं इन्द्रधनुष सी फैली, झलकी,
तुम नीर-नील-गगन ना बन सके
kasturi ki trh mehkti kvita mgar mirg-marichika ki trh..schche sukh ko tlasti nayika..adbhut lekhan
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ReplyDeleteati sundar
ReplyDeleteशिकवे शिकायत का ये अंदाज - ए-बयां खूब पुरकशिश है
ReplyDeleteमैं इन्द्रधनुष सी फैली, झलकी,
तुम नीर-नील-गगन ना बन सके
एक निवेदन:
कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..जितना सरल है इसे हटाना, उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये.
bahut achchha
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