मेरे नैनों में एक आँसू आ ठहर गया बही तेरी याद में गंगा-जमुना की धारा
पर ये इक मोती बन यहीं ठहर गया
है इसमें, तेरा ही रूप अब भी, धारा
तू तो अपनी राह बढ़ता चला गया
पीछे तेरी थी चली मेरी स्नेह्धारा
जो ह्रदय में नेह पदचिन्ह छोड़ चला गया
मिटा न पाई उसे, योगी, मेरी बहती अश्रु धारा.
12:47a.m., 20/5/10
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