ब्लॉग में आपका स्वागत है

हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Wednesday, July 28, 2010

एक आँसू

मेरे  नैनों  में  एक  आँसू    ठहर  गया  
बही  तेरी  याद  में  गंगा-जमुना  की  धारा  
पर  ये  इक  मोती  बन  यहीं  ठहर  गया  
है  इसमें, तेरा  ही  रूप  अब  भी, धारा
तू  तो  अपनी  राह  बढ़ता  चला  गया  
पीछे  तेरी  थी  चली  मेरी  स्नेह्धारा
जो  ह्रदय  में नेह  पदचिन्ह  छोड़  चला  गया
मिटा    पाई  उसे, योगी, मेरी  बहती  अश्रु  धारा.
12:47a.m., 20/5/10

No comments:

Post a Comment

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.