बोली मेरी खोजती नजरें देखकर
सखी, वो देर........देर से आते हैं
मुरझाते बेजान सी हृदयबेल पर
कुछ बूंदें छिटक चले जाते हैं
आने की ख़ुशी देते हैं मगर
जीने से पहले विदा ले जाते हैं
छाती है बदली जीवन नभ पर
चातकी पर वर्षा न कर जाते हैं
न मर पाते हैं हम पर
क्यूंकि वो चले तो आते हैं
न जीना हो पाता है मगर
पानी का बुदबुदा बन आते हैं
उन्हें आते देख भर लहर
आँसू मेरे मुस्का जाते हैं
आते हैं कहने जाने की मगर
आँसू न हँस न रो पाते हैं
4:21p.m., 17/7/10
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आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.