भूल जायेगा कुछ दिनों में जग ये
निशान मिट जायेंगे मेरे, दिमागों से
पर, हमराज, तुम्हारे मन मस्तिक्ष से
अब चाहो भी तो तुम नही भुला सकोगे
जानते हो, मैंने बेहद प्यार किया है तुमसे
वो तरु, तुमने रोपा, प्रेम-जीवन दिया जिसे
तिनके सा सही तुम्हारे लिए वो नेह सुनो मेरे
पर, तुम्हारी हृदयधारा में वो तिनका डूबेगा कैसे
तैरता रहेगा अनवरत सिंचकर 'प्रीति' के हृदयलहू से
1.50pm, 23 mar, 14
पर, तुम्हारी हृदयधारा में वो तिनका डूबेगा कैसे
ReplyDeleteतैरता रहेगा अनवरत सिंचकर प्रीत के हृदयलहू से
लाजवाब पंक्तियाँ।
सादर
मर्मस्पर्शी !
ReplyDeletesundar aur bhavpoorna rachna..pahali baar aapke blog par aana hua..bahut sundar prastutiyan hain aapki..bahut bahut badhai..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ! हर पंक्ति मन की गहराइयों से निकली प्रतीत होती है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteSunder.
ReplyDeleteमन को छूते शब्द .... भावमय करती रचना
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी
ReplyDeleteसुंदर शब्द रचना .....आभार
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मतदानकीजिए
नयी पोस्ट@सुनो न संगेमरमर
भावमय दिल को छूती प्रीतिमय प्रस्तुति
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