सुनो
मेरे सारा जहां हो
जब मैं कहती हूँ
तो ये नही अर्थ कि मेरा जीवन वीराना है
आंगन में तुलसी जहाँ होती है
वहीँ गुलाब चमेली सदाबहार भी खिलते हैं
तितलियाँ पंख फैलाये इतराती हैं
तो भंवरें भी गुन गुन करते हैं
पंछी भी मेरे आंगन में उतरते हैं
दाना चुगते हैं उड़ जाते हैं
वो वृक्ष भी हैं जो छाँव देते हैं
पवन मेरी लटों में उलझना चाहते हैं
वो मेघ घड़ी भर को बरसते हैं
ये सब मेरे जीवन का हिस्सा हैं
मेरे अपने मेरे लिए मूल्यवान हैं
तुमसे हाँ तुमसे इतना कहना है
उजाला तो मेरे चारों ओर है
दिल का आंगन तुमसे प्रकाशित है
शरीर में हृदय, रक्त, धमनियां हैं
सांसें तुमसे ही चलती हैं
सब बातों का सार यही है
जब मैं कहती हूँ
मेरे सारा जहां हो
सुनो
5.30 pm, 13 march, 14
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-04-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
ReplyDeleteआभार
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteभावुक रचना, बधाई.
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