ब्लॉग में आपका स्वागत है

हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Wednesday, April 23, 2014

Tum mera jahan तुम मेरा जहां



सुनो 
मेरे  सारा  जहां  हो
जब  मैं  कहती  हूँ 
तो  ये  नही  अर्थ  कि  मेरा  जीवन  वीराना  है
आंगन  में  तुलसी  जहाँ  होती  है
वहीँ  गुलाब  चमेली  सदाबहार  भी  खिलते  हैं
तितलियाँ  पंख  फैलाये  इतराती  हैं
तो  भंवरें  भी  गुन  गुन  करते  हैं
पंछी  भी  मेरे  आंगन  में  उतरते   हैं
दाना  चुगते  हैं  उड़  जाते  हैं
वो  वृक्ष  भी  हैं  जो  छाँव  देते  हैं
पवन  मेरी  लटों  में  उलझना  चाहते  हैं
वो  मेघ  घड़ी  भर  को  बरसते  हैं
ये  सब  मेरे  जीवन  का  हिस्सा  हैं
मेरे  अपने  मेरे  लिए  मूल्यवान  हैं
तुमसे   हाँ  तुमसे  इतना  कहना  है 
उजाला  तो  मेरे  चारों  ओर  है 
दिल  का  आंगन  तुमसे प्रकाशित  है
शरीर  में हृदय, रक्त, धमनियां  हैं
सांसें  तुमसे  ही  चलती  हैं
सब  बातों  का  सार  यही  है
जब  मैं  कहती  हूँ 
मेरे  सारा  जहां  हो
सुनो 

5.30 pm, 13 march, 14

4 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-04-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
    आभार

    ReplyDelete
  2. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

    ReplyDelete

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.