कुछ पल तुम्हारा सच ओझल किया
झूठ की जब परतें खुलती गयी
तुम्हारे शब्द विषयुक्त नजर आए
जग से नेत्र्जल को हंसकर छिपाया
पर हर दिल ने फिर भी आभास किया
तुमने ही जो दिए थे आंसू
तुम्हे ही बस नजर नहीं आए
सच कहते हो तुम अब ये की
नेह सिर्फ मैंने ही तुमसे किया
तुम तो बंटे हुए थे टुकड़ों में
इक टुकड़ा थे बहलाने चले आए
तुम जग में कहते फिरते हो
मुझ पर तरस तुमने किया
वो आकर मुझको कहते हैं
तरस तुमपर ही उनको आए
कहते हैं नहीं मेरा तुम्हारा कोई मेल
भला तुम्हारा जो स्वयं को विलग किया
हीरा तो जड़ झिलमिलाता है स्वर्ण में
पर तुम पाषाण के गुण हो लेकर आए
6:06p.m., 13/5/10
तुम जग में कहते फिरते हो
ReplyDeleteमुझ पर तरस तुमने किया
वो आकर मुझको कहते हैं
तरस तुमपर ही उनको आए
Loved it.. keep writing.