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Sunday, May 30, 2010

बस जीव जीवित है

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न आँखों में आंसू हैं
ना होठों पर मुस्कान
न शब्द ही गूंगे हैं
पर है ना मधुर तान

बस जीव जीवित है

न किसी की चाह है
ना करुण है रुदन
न तीव्र विरह वेदना है
पर है ना ही मधुर स्पंदन

बस जीव जीवित है

न तूफान की कोई आहट है
ना सजा खुशियों का है मेला
न कारवां का साथ है
पर है ना ही नितांत अकेला

बस जीव जीवित है


न इंतजार किसी का है
ना वादा ही किया अब
न अंत का ही भय है
और ना लगाव रहा कोई अब

बस जीव जीवित है



11:39p.m., 14/5/10

3 comments:

  1. ham sabke man ke bhav ko aapne bahut achhe shabd diye hain..........

    bahut sunder rachna....

    ReplyDelete

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आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.