ब्लॉग में आपका स्वागत है

हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Sunday, May 30, 2010

तेजाब जड़ों में

तुम करते हो प्रेम की बातें
नफरत मिटाने की सौ बातें
बड़े-बड़े लेख हो लिखते
आलंकारिक काव्य गढ़ते

दो प्रेमी कहीं मारे गए सुन
करते हो तुम रुदन करुण
फिर दिखाती लेखनी कौशल
है धधकती लावा हरपल

धर्म के नाम पर हुए जो दंगे
कहा क्यूँ हैं दिल खून से रंगे
फिर क्यों हो रूठे मुझसे तुम
कहाँ हो गए भाव तुम्हारे गुम 
मैंने भी तो है जीना चाहा
अपना कल संवारना चाहा
करते हो हरपल तुम भी यही
तो क्यूँ तुम्हारी चाल ही सही

क्या मुझसे यूँ रूठे रहोगे
क्या मुझको बेगाना कहोगे
जड़ ने पहुँचाया आसमान में
क्या भर दोगे तेजाब जड़ों में

11:04, 28/4/10

1 comment:

  1. क्या मुझसे यूँ रूठे रहोगे
    क्या मुझको बेगाना कहोगे
    जड़ ने पहुँचाया आसमान में
    क्या भर दोगे तेजाब जड़ों में

    bahut gahri chubhne wali pankti, tezaab ka bimb adbhut laga. saarthak rachna ke liye badhai Prritiy

    ReplyDelete

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.