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Sunday, May 30, 2010

वो तुम्हारे पल तुम्ही को सौंपती हूँ


वो तुम्हारे पल तुम्ही को सौंपती हूँ
गुजरे हुए वे कल यादों को सौंपती हूँ

वो उड़ते पंछियों का गहराते आकाश में खोना
धुंधलके में पुष्पों का पंखुड़ियों को समेट सोना
मंद पवन के झोंकों का मीठा सा स्पर्श होना
वो नन्ही बूंदों के आने पर हमारा चौंका होना

पल्लवित वो उड़ान दिशायों में ठहर गए हैं
मीठे वे सारे सिहरन मुझमें ही रह गए हैं

वो शिला पर बैठ तुम्हारा वादियों को निहारना
क़दमों पर बैठ संग सुनना कोयल का पुकारना
बेखयाली में तुम्हारे घुटनों पर सर का टिकाना
और तुम्हारी उँगलियों का मेरी लटों को सुलझाना

दृश्य वो सारे आँखों में ठहर गए हैं
स्पर्श वो तुम्हारे मुझमें रचबस गए हैं

लहरों में, कलोलना, संग तुम्हारे
और फिर, रहे नैन जब मुझे निहारे
वो छाँव में टिके कुञ्ज-कलिन के सहारे
नेह से भरे बीते थे पल मेरे, संग तुम्हारे

सारे वो लहर देह में ठहर गए हैं
स्पंदन सारे अन्तस्तल में रह गए हैं

तुम्हारे जाने की सुन आँखों से, बहती गंगा, मेरे
आने का संदेशा पा भी छलक जाते थे नैन मेरे
सुनाते थे नेत्र, तुम्हें, दिल के तरंगित गीत मेरे
लज्जा के घूँघट में रह जाते प्रणय शब्द मेरे

पलकों के मोती अब वहीँ ठहर गए हैं
अधरों में रुके शब्द भी वहीँ जम गए हैं

वो ठहर कर तुम्हारा चले जाना
वो जाकर भी तुम्हारा ठहर जाना
हमारे उन पलों को, तुम्हारा मौन कर जाना
मौन का लौट-लौटकर, ह्रदय से टकरा जाना


गुजरे हुए हमारे कल यादों को सौंपती हूँ
वो मेरे-तुम्हारे पल तुम्ही को सौंपती हूँ



12:29pm, 27/4/10

3 comments:

  1. This comment has been removed by a blog administrator.

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  2. Specifically for Sanju: Better mind your own business as it is my wish that I can post any comment on any one's blog and if you don't want me to write anything then plz tell ur friend to delete this blog.....

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  3. bahut khoob prritiy ji.
    bahut bhaavparak.
    dil ko chhoo gayee aapki rachna.

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Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.