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Sunday, May 30, 2010

उड़ने लगी ये धुंध की चादर

है कितना घनघोर अँधेरा

कहाँ है वो मेरा सवेरा

वो किरणे जो करे ह्रदय को आलोकित

मेरा होठों के बेताल सुरों को झंकृत



वो सुनो पंछी चह्चहाए

कमलदल झूम के मुस्काए

घुलने लगा है देखो अँधेरा

हरी चूनर ओढने लगी धरा



ओस झिलमिलाये, पुष्प खिलखिलाए

तरु से लिपटी बेल शर्माए, बलखाए

रथ पर सवार निकला चमकीला तारा

सुनहरी रश्मियों को धरा पर वारा



उड़ने लगी ये धुंध की चादर

प्रिय मिहिर मिलन को आतुर

मेरे आंगन जो पड़ी थी छाया

उस पर चला दी अवि ने माया



कुसुम महके, पंछी चहके

पवन चली हलके-लहके

खिलाने मेरा मन उपवन

वारी है मुझपे अपनी किरन

10:06pm, 23/4/10

2 comments:

  1. Wah Priti Ji...........
    Shabd or Kalpnao ka anupam sanjog.......

    Ati Sundar

    ReplyDelete
  2. Ji hriday se abhaar.
    Par mein janu kaise aap kaun hain? Kripya Bataiye.

    ReplyDelete

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