ये कैसी उलझन,
ये कैसा द्वंद्व
मनो मस्तिष्क में,
प्रेम व ज्ञान
क्या श्रेष्ठ.
प्रेम अनुभूति
क्या है सत्यता
ना भान
है कोमलता,
है निष्ठुर,
ना स्थायित्व.
ज्ञान प्राप्ति
सत्य का अवलोकन,
पूर्ण ध्यान,
चिर सत्य,
बदलता
किन्तु
स्थाई
सूर्य समान,
लगे ग्रहण
परन्तु
अल्पकाल,
चिर रश्मियाँ.
प्रेम
चन्द्र
घटती -बढती
चांदनी
पूर्णिमा,
अमावस.
पर
मनोरम चांदनी
क्यों लगी भली
तेजयुक्त ज्ञान धूप से
जबकि
है ज्ञान
प्रेम
चांदनी
समान
स्वप्न
है.
ये
कैसी उलझन है.
1:01pm, 12/4/10
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ReplyDeleteSamundra me moti talashna hai to moti ke gahrai tk dubki lagani padth hai.............. Agar is Sundar kavita ko samanzhna hai to apni soch is kavita ke saath saath bahut gahrai tk le jani hogi........... bahu sundar Priti ji bahut sundar........
ReplyDeleteDushyant Kumar sharma