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Sunday, May 30, 2010

यकीं कर सकूं

मेरी जिंदगी में दर्द हैं फिर भी जीती हूँ
तू जो दूर चला जाये तो चैन से मर सकूं
तू सर से पाँव तक झूठ है ये जानती हूँ
तू कभी अब सच बनकर भी आये तो कैसे यकीं कर सकूं

मैंने तुझे चाहा मानती हूँ मैं ही गलत हूँ
तू ये एक बार कह दे कि सब झूठ था तो यकीं कर सकूं
बस तेरे एक ही सच का इन्तजार करती हूँ
कि तू कभी, कहीं, किसी के लिए सच है ये यकीं कर सकूं

तेरे दिए हर दर्द को सीने से लगाती रही हूँ
कोई एक दर्द तेरा दिया ना था ये यकीं कर सकूं
जानता है तू जिंदगी से बढ़कर तुझे चाहती रही हूँ
वो तू ना था जिसके लिए मौत को गले लगाने चली यकीं कर सकूँ

तू नए-नए फूलों का रसिक है ये अब जान गई हूँ
तुझसे न की थी कभी प्रीत बस अब ये यकीं कर तो सकूँ

1 comment:

  1. "chain se so raha tha odhe kafan mazar me,
    yahan bhi satane aa gaye pata kisne bata diya hai."

    bahut hi umda aur khoobsurat rachna hai aapki Prrity----------

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