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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Monday, October 1, 2012

tasveer




वो  चंद  लफ्ज  जो  थे  दोनों  के  दरमियाँ
वो  लफ्ज़  जिंदगी  को  नए  मायने  दे  गए ....
8.56pm



तेरी  उस  तस्वीर  को  हवा  भी  छूती  थीकैसे  सहता
दिल  में  तस्वीर  को  लगाया  है  जो  जहां  से  भी  छुपी  है..
9.15pm

कुछ   यूँ  मजबूर  हो  उनकी  जिंदगी  के  लिएउनसे  वफ़ा  निभाई
मुझे  बेवफा  जानमेरी  तस्वीर  उसने  दिल--दिमाग से  हटा  दी
 10.12pm
 23/9/2012

6 comments:


  1. वो चंद लफ्ज जो थे दोनों के दरमियाँ
    वो लफ्ज़ जिंदगी को नए मायने दे गए ....अभी भी चलाये हैं वही लफ्ज़ ज़िन्दगी को . ........ज़िन्दगी

    बढ़िया मुक्तक है .
    तेरी उस तस्वीर को हवा भी छूती थी, कैसे सहता
    दिल में तस्वीर को लगाया है जो जहां से भी छुपी है..

    शीशा- ए- दिल में बसी तस्वीरे यार ,

    जब ज़रा गर्दन झुकाई ,देख ली .

    सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,
    सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,

    सीख न बांदरा दीजिए ,बैया का घर जाय .

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/10/blog-post_1.html

    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
    ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी

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  2. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  3. तस्वीर शब्दों की बहुत उम्दा सी कुछ बनाई
    दिख भी रही है और छूना भी मुमकिन नहीं !

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  4. क्या बात
    बढिया

    जब भी समय मिले, मेरे नए ब्लाग पर जरूर आएं..
    http://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb

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Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.