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Wednesday, September 26, 2012

kuchh bikhre se pal

 
ये  खोये  से  पल  क्यूँ  अच्छे  लगते  हैं
हैं  दूर  फिर  ये  हाथ  क्यूँ  अच्छे  लगते  हैं
1.47pm, 22/9/2012

ये  तेरा  सच  ये  मेरा  सच
जान  ना  ले-ले  कहीं  तेरी  मेरी ...
10.38pm

हँसी  उसकी  खो  गई  तुमसे  दूर  होकर
तुम्हे  ही  तो  सौंप  गई  थी  वो  अपनी  हँसी ....
10.41pm


वो  राज  दिल  में  छुपाये  हम  खामोश  रहे
ना  जानते  थे  नजरें  बयां  कर  देंगी  सारा  फ़साना...

हमने  हाल--दिल  जो  उनसे  कह  दिया  इशारों  में
वो  परदानशीं  हो  खो  गए  इन  मदमस्त  बहारों  में

मेरी  हथेलियों  में  तू  हर  ओर  सजा  है
बस  सबसे  तुझे  लकीरों  में  छुपा  रखा  है
11.19pm


सुना  था  वक़्त  बदल  देता   है  लकीरें  हथेली  की
हमने  धार  दे  कर  लहू  से  सजा  दिया  उनका  नाम
11.24pm

हमने  अपनी  बेरुखी के  उनके  वहम  को  जिन्दा  रखा
कि  कहीं  दूर  होने  पर  वो  स्वयं  से  दूर  ना  हो  जायें..
11.35pm, 25/9/2012

तेरे  होंठों  को  हंसी  ना  दे  सके  ये  गम  है
तेरे  गम  की  एक  वजह  हम  हैं  ये  गम  है
1.23am, 26/9/2012

6 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

    हमने हाल-ए-दिल जो उनसे कह दिया इशारों में
    वो परदानशीं हो खो गए इन मदमस्त बहारों में

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  2. बहुत सुन्दर रचना..

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  3. अपने भावो को बहुत सुंदरता से तराश कर अमूल्य रचना का रूप दिया है.

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  4. तेरे होंठों को हंसी ना दे सके ये गम है
    तेरे गम की एक वजह हम हैं ये गम है..waah

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  5. बढ़िया रचना.... भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति

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