कभी महफिलों में राज करने की तमन्ना न की
दिल के आंगन में बसेरा हो बस यही दिन रैन दुआ की
तन्हाई भाती थी कि सोचों में उन्मुक्त छाये रहते थे
आज तन्हाई गले लगाती है कि, बहें, अश्क जो छुपे थे
कभी दगा करें, न मिले, सोचा नहीं होगा किसी ने भी
फिर क्यूँ हिस्से में आते हैं, बहते आंसू और, जुदाई भी
कहें क्या किसी को और क्या दोष देना इस दिल की लगी को
लगाई भी दिल ने और जुदाई का दर्द भी मिला है इस दिल को
महफिलों से है घबराता, है इच्छा, तन्हाई की
कभी महफिलों में राज करने की तमन्ना न की
10.6pm, 22/10/2012
दिल के आंगन में बसेरा हो बस यही दिन रैन दुआ की
तन्हाई भाती थी कि सोचों में उन्मुक्त छाये रहते थे
आज तन्हाई गले लगाती है कि, बहें, अश्क जो छुपे थे
कभी दगा करें, न मिले, सोचा नहीं होगा किसी ने भी
फिर क्यूँ हिस्से में आते हैं, बहते आंसू और, जुदाई भी
कहें क्या किसी को और क्या दोष देना इस दिल की लगी को
लगाई भी दिल ने और जुदाई का दर्द भी मिला है इस दिल को
महफिलों से है घबराता, है इच्छा, तन्हाई की
कभी महफिलों में राज करने की तमन्ना न की
10.6pm, 22/10/2012
महफिलों से है घबराता, है इच्छा, तन्हाई की
ReplyDeleteकभी महफिलों में राज करने की तमन्ना न की
very nice
वाह||| बहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना...
:-)
विजयदशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteबढिया, बहुत सुंदर
क्या बात
विजयदशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं
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