उन अश्रु बूंदों में उसकी मोहक छवि झिलमिलाती है
वो क्या जाने बिखरे गेसू उन उँगलियों को बुलाती हैं
सवेरे की पहली किरण मुस्कान बनकर जगाती है
पुष्पों का झूमना उनकी आहटें मेरे दिल को सुनाती हैं
वो मेघों का भ्रमण चपलता के किस्से लगाता है
पंछियों की चहचहाहट ठिठोली की गूँज सुनाती हैं
मंद पवन का बहना स्पर्शों की अनुभूति कराता है
साँझ की बेला शब्दों के मुखरित पुष्प रह-रह बरसाते हैं
नन्हे बालकों सा तुम्हारा भोलापन अब भी मुझे लुभाता है
सुनो ये यादों की नदिया की लहरें उछल-उछल तुम्हे बुलाती हैं
वो क्या जाने बिखरे गेसू उन उँगलियों को बुलाती हैं
सवेरे की पहली किरण मुस्कान बनकर जगाती है
पुष्पों का झूमना उनकी आहटें मेरे दिल को सुनाती हैं
वो मेघों का भ्रमण चपलता के किस्से लगाता है
पंछियों की चहचहाहट ठिठोली की गूँज सुनाती हैं
मंद पवन का बहना स्पर्शों की अनुभूति कराता है
साँझ की बेला शब्दों के मुखरित पुष्प रह-रह बरसाते हैं
नन्हे बालकों सा तुम्हारा भोलापन अब भी मुझे लुभाता है
सुनो ये यादों की नदिया की लहरें उछल-उछल तुम्हे बुलाती हैं
7.20 pm, 12/10/2012
आपने मनोभावों को बड़ी सरलता से उकेरा है...इन शब्दों के सहारे..|
ReplyDeleteबहुत खूब...
सादर |
बहुत सुन्दर भाव ...
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteउन अश्रु बूंदों में उसकी मोहक छवि झिलमिलाती है
ReplyDeleteवो क्या जाने बिखरे गेसू उन उँगलियों को बुलाती हैं
us avykt ke prati aapke udgaar hai ye
vah koi purush nahi
vah vah hai jo sampurnta ka pratik hai
नन्हे बालकों सा तुम्हारा भोलापन अब भी मुझे लुभाता है
सुनो ये यादों की नदिया की लहरें उछल-उछल तुम्हे बुलाती हैं
prakriti ke prtyek halchal me tumhe usi ka ahsaas hota hai
bahut achchhi kavita badhaaii priti ji