वो कहते थे तुम रूठे तो जहाँ रूठ जायेगा
तेरे बिना ये दीवाना पल भर न रह पायेगा
फूलों से भरा चमन वीराना नजर आएगा
सितार बजेगा तो सही सुर सजा न पायेगा
आज मेरी हँसी उसे भाती नही
बहते अश्रु अब नजर आते नहीं
कुछ पल का खेल था, बस, चाहत उसकी
लहरों सा मेल हो थी कहाँ चाहत उसकी
तस्वीर है नई आज आँखों में उसकी
नए वादों की झड़ी है बातों में उसकी
आज वो कोई नहीं है मेरा
कहता था सदा के लिए हूँ तेरा
देखो मेरी गली में क्या नजारा है
लोगों की आमद से भरा घर सारा है
एक मुस्कान को मेरी, मेरे करीब आ पुकारा है
पूछते हैं रूह कहाँ है क्यूँ भला जमीं पर उतारा है
आज तुम्हे दिखे है दूर जो उजली किरण
हो आजाद तुम, मैं, हुआ है मुक्ति से मिलन
4.55pm, 10/10/2012
आज मेरी हँसी उसे भाती नही
ReplyDeleteबहते अश्रु अब नजर आते नहीं
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
सब मन का ही खेल है.
किस् समय क्या हो जाये मन ही जाने.
काश!मन को जान पाते हम.
मेरे ब्लॉग को भुलाया आपने.
काश! आपको कभी याद आजाये.
बहुत सुंदर
ReplyDeleteदेखो मेरी गली में क्या नजारा है
लोगों की आमद से भरा घर सारा है
एक मुस्कान को मेरी, मेरे करीब आ पुकारा है
पूछते हैं रूह कहाँ है क्यूँ भला जमीं पर उतारा है
क्या बात, बहुत बढिया
अजीब बात है ना ...सब कुछ बदलता रहता है
ReplyDeleteरेत के पन्ने पर लिखे शब्द की तरह ..प्रेम के वादों
को भी लहरें मिटा जाती है
कुछ भी स्थायी नहीं
कुछ पल का खेल था, बस, चाहत उसकी
जब सत्य से हम भिग्य है तो मन में वेदना क्यों
यही तो कारन है जिसके वशीभूत हम कविता रचाते है
आपके द्वारा की गयी ,सशक्त अभिव्यक्ति ..बधाई