मुझसे
दोस्ती करो ऐ मानव
नहीं तुम्हे कष्ट दूँ मैं कोमलांगी
आते हो लिए हृदय में तांडव
दिल को मुस्कान देती है ये कुसुमावली
कभी तोड़कर सजा लेते हो मुझको
तो कभी खिन्न हाथ से नोचते पंखुरियां
तब भी सुगन्धित कर देती हूँ तुमको
मुस्कुरा कर भुला देती हूँ तुम्हारी नादानियाँ
सजाती हूँ घर, आंगन, क्यारी, फुलवारी
रंगों बू से भर देती हूँ दिल का हर कोना
मिलती रहे जगत को हर चीज न्यारी
जरुरी है इसी लिए प्रकृति के हर अंग का होना
8.44pm, 18/3/2013
नहीं तुम्हे कष्ट दूँ मैं कोमलांगी
आते हो लिए हृदय में तांडव
दिल को मुस्कान देती है ये कुसुमावली
कभी तोड़कर सजा लेते हो मुझको
तो कभी खिन्न हाथ से नोचते पंखुरियां
तब भी सुगन्धित कर देती हूँ तुमको
मुस्कुरा कर भुला देती हूँ तुम्हारी नादानियाँ
सजाती हूँ घर, आंगन, क्यारी, फुलवारी
रंगों बू से भर देती हूँ दिल का हर कोना
मिलती रहे जगत को हर चीज न्यारी
जरुरी है इसी लिए प्रकृति के हर अंग का होना
8.44pm, 18/3/2013
प्राकृति तो जीवन है ... वो हर जगह है ...
ReplyDeleteमुझसे दोस्ती करो ऐ मानव
ReplyDeleteनहीं तुम्हे कष्ट दूँ मैं कोमलांगी
आते हो लिए हृदय में तांडव
दिल को मुस्कान देती है ये कुसुमावली ...waah bahut khub
nature aur human ke bich rishta hai isi tarah ka hai ..prakriti roj antim sans tak khushbu ,saundry ..hame de zaati hai ...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
बधाई
अति सुन्दर कविता,
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