दो बड़े कर
रहे बातें
बच्चों की होती हैं दिन और रातें,
न कमाने की चिंता कोई,
न गंवाने के डर में नींद खोई.
.
.
भूले? क्या बचपन के दिन थे,
जब बोल बोलना नहीं सीखे थे,
था कितना कठिन बतलाना,
अपनी कोई परेशानी सुनना.
सिर्फ, रोकर बतलाना,
है लघु-शंका को आना.
लो पेट पर ही थपकी,
निकली, थी अब तक रुकी,
कपड़े गीले फिर कर दिए, फिर कहते हैं.
पेट को मिला आराम,
बड़े कर रहे अभी भी कोहराम.
ओह! पेट लग रहा है खाली,
देखूं सबको आँखें लिए सवाली,
अरे रोना शुरू हुआ, फिर कहते हैं.
पेट में हो रहा बहुत दर्द,
मम्मी है सोई, कहेंगे सब बेदर्द.
रोना छूटा, दूध पिलाते हैं,
उफ़ लोरी गा-गा सुलाते हैं,
रोना बंद नहीं हो रहा, फिर कहते हैं.
ये बालपन की थी कुछ परेशानी,
सोचा नहीं? क्यूँ हो रही है हैरानी?
बोलना सीखना क्या आसान था,
चलने में तो गिर कर बुरा हाल था,
संग मेरे तुतलाते हैं, साफ़ बोलो, फिर कहते हैं.
वो न छुओ, वहां न जाओ,
कुछ पूछो तो -अभी न सताओ.
ना ही पास है पैसे हमारे,
दिन-रात सुनाते हैं बातें सारे.
कितना सब हम सहते हैं,
ना अपनी मर्जी से जी सकते हैं,
मस्ती की है जिंदगी फिर कहते हैं.
5.37pm, 15/3/2013
बच्चों की होती हैं दिन और रातें,
न कमाने की चिंता कोई,
न गंवाने के डर में नींद खोई.
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जब बोल बोलना नहीं सीखे थे,
था कितना कठिन बतलाना,
अपनी कोई परेशानी सुनना.
सिर्फ, रोकर बतलाना,
है लघु-शंका को आना.
लो पेट पर ही थपकी,
निकली, थी अब तक रुकी,
कपड़े गीले फिर कर दिए, फिर कहते हैं.
पेट को मिला आराम,
बड़े कर रहे अभी भी कोहराम.
ओह! पेट लग रहा है खाली,
देखूं सबको आँखें लिए सवाली,
अरे रोना शुरू हुआ, फिर कहते हैं.
पेट में हो रहा बहुत दर्द,
मम्मी है सोई, कहेंगे सब बेदर्द.
रोना छूटा, दूध पिलाते हैं,
उफ़ लोरी गा-गा सुलाते हैं,
रोना बंद नहीं हो रहा, फिर कहते हैं.
ये बालपन की थी कुछ परेशानी,
सोचा नहीं? क्यूँ हो रही है हैरानी?
बोलना सीखना क्या आसान था,
चलने में तो गिर कर बुरा हाल था,
संग मेरे तुतलाते हैं, साफ़ बोलो, फिर कहते हैं.
वो न छुओ, वहां न जाओ,
कुछ पूछो तो -अभी न सताओ.
ना ही पास है पैसे हमारे,
दिन-रात सुनाते हैं बातें सारे.
कितना सब हम सहते हैं,
ना अपनी मर्जी से जी सकते हैं,
मस्ती की है जिंदगी फिर कहते हैं.
5.37pm, 15/3/2013
वाह वाकई बचपन भी कमाल का होता है
ReplyDeleteनो टेंसन---
बहुत बढ़िया रचना
बधाई ----
आग्रह है मेरे भी ब्लॉग में सम्मलित होकर
प्रतिक्रिया दें,प्रसन्नता होगी
बचपन अनमोल है. बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteसुन्दर अनमोल बचपन..
ReplyDeleteबचपन भी कमाल का होता है,
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
कोई मुझे लौटा दे बचपन का सावन, को कागज की कश्ती वो बारिश का पानी.....
ReplyDeleteबहुत सुदंर
क्या बात..
समय अनमोल हैँ इसे न गवायेँ .समय का सदउपयोग करे
ReplyDeleteसमय बहुत ही अनमोल है समय का सद्द उपयोग करेँ धन्यबाद
ReplyDeleteby chef ganesh mamgai
Lovely blog you hhave here
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