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Saturday, March 16, 2013

fir kehte hain फिर कहते हैं

दो  बड़े  कर  रहे  बातें
बच्चों  की  होती  हैं  दिन  और  रातें,
न  कमाने  की  चिंता  कोई,
न  गंवाने  के  डर  में  नींद  खोई.
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भूले? क्या  बचपन  के  दिन  थे,
जब  बोल  बोलना  नहीं  सीखे  थे,
था  कितना  कठिन  बतलाना,
अपनी  कोई  परेशानी  सुनना.

सिर्फ,  रोकर  बतलाना,
है  लघु-शंका  को  आना.
लो  पेट  पर  ही  थपकी,
निकली, थी  अब  तक  रुकी,
कपड़े  गीले  फिर  कर  दिए, फिर  कहते  हैं.

पेट  को  मिला  आराम,
बड़े  कर  रहे  अभी  भी कोहराम.
ओह! पेट  लग  रहा  है  खाली,
देखूं  सबको  आँखें  लिए  सवाली,
अरे  रोना  शुरू  हुआ, फिर  कहते  हैं.

पेट  में  हो  रहा  बहुत  दर्द,
मम्मी  है  सोई, कहेंगे  सब  बेदर्द.
रोना  छूटा, दूध  पिलाते  हैं,
उफ़  लोरी  गा-गा  सुलाते  हैं,
रोना  बंद  नहीं  हो  रहा, फिर  कहते  हैं.

ये  बालपन  की  थी  कुछ  परेशानी,
सोचा नहीं? क्यूँ  हो  रही  है  हैरानी?
बोलना  सीखना  क्या  आसान  था,
चलने  में तो  गिर  कर  बुरा  हाल  था,
संग  मेरे  तुतलाते हैं, साफ़  बोलो, फिर  कहते  हैं.

वो  न  छुओ, वहां  न  जाओ,
कुछ  पूछो  तो -अभी  न  सताओ.
ना  ही  पास  है  पैसे  हमारे,
दिन-रात  सुनाते  हैं  बातें  सारे.
कितना  सब  हम  सहते  हैं,
ना अपनी  मर्जी  से  जी  सकते  हैं,
मस्ती  की  है  जिंदगी  फिर  कहते  हैं.
 
5.37pm, 15/3/2013

8 comments:

  1. वाह वाकई बचपन भी कमाल का होता है
    नो टेंसन---
    बहुत बढ़िया रचना
    बधाई ----

    आग्रह है मेरे भी ब्लॉग में सम्मलित होकर
    प्रतिक्रिया दें,प्रसन्नता होगी

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  2. बचपन अनमोल है. बहुत सुंदर रचना.

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  3. सुन्दर अनमोल बचपन..

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  4. बचपन भी कमाल का होता है,
    बहुत सुंदर रचना.

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  5. कोई मुझे लौटा दे बचपन का सावन, को कागज की कश्ती वो बारिश का पानी.....

    बहुत सुदंर
    क्या बात..

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  6. समय अनमोल हैँ इसे न गवायेँ .समय का सदउपयोग करे

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  7. समय बहुत ही अनमोल है समय का सद्द उपयोग करेँ धन्यबाद
    by chef ganesh mamgai

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  8. Lovely blog you hhave here

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Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.