वो दूरियां बढाने का सामान सजाते रहे
हम नासमझ से फिर भी उन्हें बुलाते रहे
राहों में दीवारें वो चुनवाते रहे
मान परीक्षा हम उन्हें गिराते रहे
फूलों की बगिया को दूर हटाते रहे
सुगंध से हम खुद को बहलाते रहे
काँटों में वो पल-पल उलझाते रहे
दामन बचा हम फूल बरसाते रहे
गैरों के करीब वो जाते रहे
अपनों से दूर हम आते रहे
अपना दामन वो छुडाते रहे
वफ़ा के वादे हम निभाते रहे
12:14pm, 2/4/10
Nice.. keep writing.
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