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Monday, April 5, 2010

तुम झूठे हो इस सच से क्यों भीगी हैं पलकें मेरी

जानती हूँ तुम नहीं आओगे

फिर भी मुझमें कितना इन्तजार भर गए


तुम ना होकर भी यहीं हो

ये कैसा भरम भर गए

सबने कहा कि तुम झूठे हो

मैंने कहा तुम सच हो

सबको सच्चा कर दिया

और मुझको झूठा कर गए


तुम मेरे कोई नहीं हो

पर मेरे होकर रह गए

मेरे हो गए थे तुम अगर

तो आँखों से कैसे बह गए

और ना हुए थे मेरे गर

तो यादो में कैसे ठहर गए


असमय चले आये जीवन में

समय नहीं, अब, कह गए

मैंने जितना विश्वास किया

उतना अविश्वास भर गए

हो प्रार्थना में तुम हर पल

जीवन अभिशप्त कर गए


सपनों में न आये पलभर

उठते ही कैसे चले गए

जिंदगी भर के साथ का वादा रहा

पलभर में छोड़ने को कह गए

खुश रहना ये कहते रहे

प्रीत को आंसुओं से भर गए

2:49pm, 3/4/10

2 comments:

  1. achcha likhti ho dear keep it up.achche jajbaat chupe hain rachna me.apne blog par aamantrit karti hoon.

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  2. .
    तू राह तके
    मै रहा भटक
    मेरे आने का इंतज़ार ना कर
    नाशाद ना कर
    जिंदगानी को
    एक दिन तो कोई आ जाएगा .........रवि विद्रोही

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