वो चंचल खिलती कली
पलकों तले मेरे वो पली
बाहों में जब उसको भरा
दर्द सारा स्पर्श ने हरा
ममता मेरी खिल-खिल गई
मेरी लाडो जो मुझे मिल गई
आँचल में जो उसको छुपाया
माँ होने का गौरव पाया
तुतलाती वो मीठी बोली
कानों में ज्यों कोयल बोली
घुटनों पर वो तेरा चलना
ठुमकने से पायल का बजना
पहली बार वो पढने जाना
ममता का मेरे डर जाना
समय का वो बढ़ते जाना
तुझपर चिंता, प्यार लुटाना
पल-पल तेरा वो खिलना
रूप-स्निग्घ्द्ता का निखरना
बेटी से जुड़ा सत्य का आना
होगा तुझे अब पिया घर जाना
दूर कलेजे के टुकड़े का जाना
आशीर्वचन दे अश्रु छुपाना
सहना होगा मुझे, ये सब, जाना
बिटिया, फिर भी, मेरे आँगन आना
7:22pm, 2/4/10
प्रीति,
ReplyDelete"बिटिया फिर भी मेरे आँगन आना" आपकी ये चाहत सबकी चाहत बने.मखमली अहसासों में लिपटे भाव मन को सहलाते हैं.बहुत खूबसूरत रचना.उम्मीद से भी आगे ले जाती हुई.लिखती रहे.