वो नन्हा सा कमल
खिला भरपूर मस्ती से
भरा हवा के संग बहता
लहरों पर मचलता
धीरे-धीरे अलहड़पन आया
मादक खुशबू का नशा छाया
मस्ती ने स्थिरता ली
यौवन ने स्निग्घता दी
एक भँवरा इक दिन मंडराया
उसको खुशबू संग ले आया
सोने का था सुन्दर पात्र
पर था उसमें जल ही मात्र
फिर आई नन्ही कमलिनी
खुशबू लिए भिनी भिनी
पर भँवरा छिटक गया
किसी मंज़र पर भटक गया
ममता से भरपूर कमल
पर अपनों से दूर कमल
बस कमलिनी गोद में
न कोई भ्रमर प्रमोद में
आह ताल से बिछडने का गम
कहाँ है वो जिसमें हुए मैं से हम
बस सोने का था पात्र
थी उसमें जलछाया मात्र
Wonderful Prity.great Job.keep it up.
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