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Monday, June 30, 2008

जलछाया

वो नन्हा सा कमल
खिला भरपूर मस्ती से
भरा हवा के संग बहता
लहरों पर मचलता

धीरे-धीरे अलहड़पन आया
मादक खुशबू का नशा छाया
मस्ती ने स्थिरता ली
यौवन ने स्निग्घता दी

एक भँवरा इक दिन मंडराया
उसको खुशबू संग ले आया
सोने का था सुन्दर पात्र
पर था उसमें जल ही मात्र

फिर आई नन्ही कमलिनी
खुशबू लिए भिनी भिनी
पर भँवरा छिटक गया
किसी मंज़र पर भटक गया

ममता से भरपूर कमल
पर अपनों से दूर कमल
बस कमलिनी गोद में
न कोई भ्रमर प्रमोद में

आह ताल से बिछडने का गम
कहाँ है वो जिसमें हुए मैं से हम
बस सोने का था पात्र
थी उसमें जलछाया मात्र

1 comment:

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.