बचपन को नज़र भर देख ताक पर रखा
वो शरारतों से भरा निश्छल बचपन
हर वक्त महकता कोलाहल भरपूर
ममता की छॉव में पलता
जिन्दगी नन्हें दिमाग से तौलता
उसने यौवन की दहलीज़ पर कदम रखा
आँखों में मदमाते स्वप्न
पलकों में ममता का नूर
इठलाती, बलखाती जवानी
कई नजरें थी उसकी दिवानी
वक्त के दिए साथ का उसने मान रखा
वो साथी से शर्मिला मिलन
हर पल बन गया था कोहिनूर
नैनों ने नैनों से की अनगिनत बातें
कटे ऐसे ना जाने कितनी दिन कितनी रातें
गम ने चोरी से पिछवाड़े से कदम रखा
सूनी धरती सूना हो गया गगन
रोते-रोते हो गई आँखों बेनूर
साथी का साथ छूट गया
आँचल खाली ही रह गया
जिन्दगी ने क्यों ममता से वंचित रखा
थी कितनी वो खुशियों में मगन
और अब लबों से हँसी हो गई दूर
काश उसने कहा होता हाँ
आज उसे कोई कहता माँ
i felt ........pain miss p..utkrist rachna...
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