ब्लॉग में आपका स्वागत है

हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

आप मेरी शक्ति स्रोत, प्रेरणा हैं .... You are my strength, inspiration :)

Wednesday, January 30, 2013

majbur deedar ko मजबूर दीदार को



हम  भी  तो  देखें  तेरे  वफ़ा-ए -मोहब्बत  को
रहती  है  रोशन  लौ  कब  तक  बिन  दीदार  के

रखते  हो  जलाये  दिल  में  इस  शमा  को
या  जला  लेते  हो  शमा  किसी  और  हसीं  के  दर  पे

सोचते  हैं  हो  जायें   पर्दानशीं  तुझे  आजमाने  को
खुद  हो  जाते  हैं  मजबूर  दीदार  को  दिल  की  तड़प  से
12.24am, 1/29/2013

5 comments:

  1. Wow. Very fine, fine & meaningful presentation.
    दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
    क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।

    जिनके साथ रहना हैं ,नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
    खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब ... दिल की तड़प से आगे कोन सह पाता है ...

    ReplyDelete

Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.