दरवाजे बंद
हुए, उनके दिल के झरोखों में नए दिए जल गए
आंसुओं से भरी पलकें लिए झिलमिलाती रौशनी देखते रह गए
आंसुओं से भरी पलकें लिए झिलमिलाती रौशनी देखते रह गए
हमें न इश्क भाता है न ये मौसम-ए-इश्क
ऐ दिल चल दूर विरानों को ठिकाना बना लें
5.08pm, 9/2/2013
नहीं मुमकिन एक सा होना
माना हर पल, हर किसी के लिए
पर चाहता कौन है तुम मिलो
सबसे वही लगाव वही शिद्दत लिए
5.35pm
9/2/2013
भावो को शब्दों में उतार दिया आपने.................
ReplyDeletesabhi ekdam best...
ReplyDelete:-)
"नहीं मुमकिन एक सा होना
ReplyDeleteमाना हर पल, हर किसी के लिए
पर चाहता कौन है तुम मिलो
सबसे वही लगाव वही शिद्दत लिए "
क्या बात है ! वाह!
बहुत ही सुंदर भावों की प्रस्तुति.
ReplyDeleteमौसम के अनुकूल -
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति |
आभार आदरेया -
नहीं मुमकिन एक सा होना
ReplyDeleteमाना हर पल, हर किसी के लिए
पर चाहता कौन है तुम मिलो
सबसे वही लगाव वही शिद्दत लिए
bahut sundar
बढिया रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सभी एक से बढ़कर एक. बहुत प्यारा भाव...
ReplyDeleteनहीं मुमकिन एक सा होना
माना हर पल, हर किसी के लिए
पर चाहता कौन है तुम मिलो
सबसे वही लगाव वही शिद्दत लिए
शुभकामनाएँ प्रीती.
सुंदर भाव।
ReplyDeleteफुर्सत मिले तो शब्दों की मुस्कुराहट आने वाले दिनों में पर ज़रूर आईये !
achchi rachana
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