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Wednesday, February 27, 2013

khamoshi ख़ामोशी



इससे  बड़ी  सजा  क्या  देगा  कोई  खुद  को 
वो  सामने  हो, रजा  भी  हो, आरजू  भी  हो

पलकें  नम  हो, फिर  भी  ख़ामोशी  हो,
हाथों  में  कम्पन  हो, होंठों  पर  दुआ  हो

दिल  मचले, रूह  तड़पे  फिर  भी  ख़ामोशी  हो,
वो  पुकारें, रूह  के  लब  हिलें  पर  ख़ामोशी  हो
जान  जाये,  वो  सामने  हो, फिर  भी  ख़ामोशी  हो,
पथरायी  झुकी  आँखों  में  सदा  के लिए  ख़ामोशी  हो
3.19 pm, 27/2/2013 

5 comments:

  1. दिल मचले, रूह तड़पे फिर भी ख़ामोशी हो,
    वो पुकारें, रूह के लब हिलें पर ख़ामोशी हो
    जान जाये, वो सामने हो, फिर भी ख़ामोशी हो,
    पथरायी झुकी आँखों में सदा के लिए ख़ामोशी हो

    बेहतरीन गजल


    सादर

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  2. बहुत सुंदर रचना
    क्या कहने

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  3. क्या अंदाज है,अतिसुन्दर.

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  4. दिल मचले, रूह तड़पे फिर भी ख़ामोशी हो,
    वो पुकारें, रूह के लब हिलें पर ख़ामोशी हो ..
    ये तो खामोशी का गहरा इम्तिहान है ... वो काट ले गला पर उफ़ न निकले ...
    बहुत खूब ....

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  5. दिल मचले, रूह तड़पे फिर भी ख़ामोशी हो,
    वो पुकारें, रूह के लब हिलें पर ख़ामोशी हो ..

    ...वाह! बेहतरीन रचना...

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